देवास लाइव। देवास प्रेस क्लब का आगामी चुनाव गुटीय राजनीति और नियमों की अनदेखी के कारण विवादों में घिरता जा रहा है। 28 सितंबर को होने वाले चुनाव में सत्ता में बने रहने के लिए कई प्रकार की साजिशें और धोखाधड़ी सामने आई हैं, जिनमें से मानद सदस्यता और वकीलों की चुनावी पात्रता सबसे प्रमुख मुद्दे बनकर उभरे हैं।
सत्ता में बने रहने की नई चाल: मानद सदस्यता का दुरुपयोग
क्लब पर कब्जा बनाए रखने के उद्देश्य से अब तक सत्ता में रहे एक गुट ने आठ नए सदस्यों को जोड़ा, जिस पर अन्य सदस्यों ने आपत्ति जताई थी। यह आपत्ति इस बात पर थी कि चुनाव के समय नए सदस्यों को जोड़ना नियमों के खिलाफ है। जवाब में, इस गुट ने कहा कि इन सदस्यों को मानद सदस्य के रूप में जोड़ा जा रहा है, जो न तो मतदान कर सकते हैं और न ही चुनाव लड़ सकते हैं।
लेकिन बाद में यह सामने आया कि गुट ने धोखाधड़ी करते हुए मानद सदस्यों को वोट देने का अधिकार दिला दिया। प्रोसिडिंग रजिस्टर में हेरफेर कर मानद सदस्यों को मतदान के योग्य बना दिया गया, जिससे चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठ गए। अन्य सदस्य और चुनाव लड़ने की मंशा रखने वाले लोग इस धोखे का शिकार हुए, जो क्लब की आंतरिक राजनीति में सत्ता के लालच की ओर इशारा करता है।
वकीलों की चुनावी पात्रता पर विवाद
इसके अलावा, प्रेस क्लब के चुनाव में शामिल कुछ सदस्य पेशेवर वकील हैं, जो अधिवक्ता अधिनियम 1961 के अंतर्गत किसी अन्य पेशे से अपनी आजीविका नहीं कमा सकते। क्लब के इन वकील सदस्यों की चुनाव लड़ने की मंशा पर अब कानूनी प्रश्न खड़े हो गए हैं। अगर यह मामला न्यायालय में पहुंचा, तो इनकी वकालत की सनद और सरकारी अधिमान्यता खतरे में पड़ सकती है। इस कानूनी विवाद ने इन सदस्यों की चुनावी पात्रता को संदेहास्पद बना दिया है और चुनावी माहौल को और जटिल कर दिया है।
लोकतंत्र पर हमला: गुटीय राजनीति और धोखाधड़ी
देवास प्रेस क्लब में जिस तरह से सत्ता में बने रहने के लिए नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, वह प्रेस क्लब की गरिमा को ठेस पहुंचा रही है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता का होना अनिवार्य है, लेकिन इस चुनाव में गुटीय राजनीति और धोखाधड़ी का खेल खुलकर सामने आ रहा है। मानद सदस्यों के नाम पर नियमों का दुरुपयोग और वकीलों की चुनावी पात्रता पर उठे सवाल, दोनों ही घटनाएं प्रेस क्लब की आंतरिक राजनीति की गहराई में चल रही साजिशों की ओर इशारा करती हैं।
देवास प्रेस क्लब का यह चुनाव केवल एक साधारण चुनाव नहीं रह गया है, बल्कि इसमें गुटीय राजनीति, धोखाधड़ी और कानूनी पेचीदगियों का मेल सामने आ रहा है। नए सदस्यों को जोड़ने में की गई हेरफेर और वकीलों की चुनावी पात्रता पर खड़े हुए सवाल चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता को बाधित कर रहे हैं।
आने वाले समय में देखना होगा कि क्या इस प्रकार की चालबाजी और धोखाधड़ी के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाए जाते हैं या फिर यह चुनाव भी गुटीय राजनीति और कानूनी विवादों की भेंट चढ़ जाएगा।