कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम संपन्न
देवास लाइव। कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा वर्तमान रबी मौसम में बुवाई के महत्व को ध्यान में रखते हुये कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम विकासखण्ड टोंकखुर्द के ग्राम संवरसी में दिनांक 07.11.2020 को आयोजित किया गया जिसमें मुख्य रूप से रबी फ़सलों में समन्वित उर्वरक प्रबंधन की तकनीक पर जानकारी दी गई जिससे कृषक भाई कम लागत में अधिक से अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त करने में सफल हो सकें।
प्रशिक्षण के प्रथम सोपान में डॉ. के.एस.भार्गव द्वारा रबी की मुख्य फ़सलें जैसे-गेहूँ और चना की बुवाई कैसे करें और इसके साथ ही यंत्रिकरण की नवीन तकनीकियों पर ध्यान आकृष्ट किया गया जिसके अंतर्गत मुख्य रूप से रेज्ड बेड पद्धति से बुवाई करने संबंधी तकनीक पर चर्चा की गयी। इस तकनीक से किसान भाई बीजों की बचत करते हुये अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही नमी संरक्षण प्राप्त करने में सहायता प्राप्त होगी।
डॉ. सविता कुमारी द्वारा कृषकों के बीच में समन्वित उर्वरक प्रबंधन पर गहन चर्चा की गयी। जिसके अंतर्गत मुख्य रूप से जैविक और देशी खादों को अधिक से अधिक अपनी खेती में अपनाने के लिये जोर दिया जिससे खेत की मिट्टी मुलायम होगी, जल का रिसन अच्छा होगा, जड़ों का विकास एवं उर्वरक उपयोग क्षमता में वृद्धि होगी। इसके साथ ही ये भी बताया गया कि किसान भाई केवल रासायनिक खादों पर निर्भर ना रहते हुये समन्वित उर्वरक प्रबंधन करें अर्थात् देशी खाद, जैविक खाद एवं रासायनिक खादों का सामंजस्य स्थापित करते हुये सही सदुपयोग करें जिससे लागत मूल्य में कमी आयेगी। इसके साथ ही गेहूँ, चना जैसी फ़सलों के उर्वरक प्रबंधन पर जानकारी दी।
अन्तिम कड़ी में केन्द्र प्रमुख प्रधान वैज्ञानिक डॉ.ए.के.दीक्षित द्वारा गेहूँ, चना, लहसुन और प्याज के बीज उपचार की विस्तृत जानकारी दी गई कि लहसुन और प्याज को कार्बन्डाज़िब + मेन्कोज़िब का 3 ग्राम प्रति लीटर घोल बनाकर उपचारित करें। साथ ही गेहूँ और चना को थायरम + कार्बोक्जिल से उपचारित करें। इसके साथ ही सही बीज मात्रा जैसे गेहूँ 100 से 120 किग्रा. प्रति हेक्टेयर, चना 75 से 80 किग्रा. प्रति हेक्टेयर, लहसुन 5 से 6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उपयोग करें। साथ ही सही समय पर खरपतवार नियंत्रण, सिंचाई प्रबंधन कर के अधिक से अधिक लाभ कमा सकते हैं।गेहूँ में यूरिया दो बार में पहला १८ से २० दिन पर दो बोरी प्रति हेक्ट तथा दो बोरी प्रति हेक्ट ५० दिन पर दे ।प्रशिक्षण के दौरान लगभग 25 से 30 किसानों द्वारा भागीदारी की गयी। किसानों के प्रश्नों का वैज्ञानिकों द्वारा समाधान भी किया गया।।