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रिपोर्ट कार्ड: राजे के लिए चुनाव चुनौती भरा, भीतरघात का सामना करना पड़ सकता है



देवास लाइव। देवास में पिछले 30 वर्षों से बीजेपी का राज रहा है और बीजेपी की इस सीट पर राज परिवार का राज रहा है। लेकिन इस बार का चुनाव राज परिवार के लिए चुनौती पूर्ण हो सकता है। कुछ मुद्दों पर जनता की मुखर नाराजगी और खुद के संगठन से भीतरघात की संभावना बन सकती है। इधर कांग्रेस ने अगर मजबूत कैंडिडेट खड़ा कर दिया तो मुश्किल और भी बढ़ सकती है।

1990 से देवास विधानसभा पर भाजपा काबिज रही है। इस सीट पर राज परिवार के तुकोजीराव पवार अजय योद्धा के रूप में विजित रहे। उनकी मृत्यु के पश्चात उपचुनाव में उनकी पत्नी गायत्री राजे पवार को पार्टी ने चुनाव लड़ाया और सहानुभूति की लहर में उन्होंने चुनाव जीता भी। यह वह वक्त था जब गायत्री राजे पवार को तेजी से नेतृत्व सीखने की जरूरत थी। उन्होंने यह काम बखूबी किया और 2018 में ना सिर्फ विधानसभा चुनाव जीता बल्कि खुद को मुखर और तेजतर्रार नेत्री भी साबित किया। मुख्यमंत्री से नजदीकी होने की वजह से राजमाता ने देवास पर राजा की तरह राज किया। विकास के काम बिना उनके अप्रूवल के नहीं होते थे। देवास में चाहे नगर निगम का काम हो या विधानसभा का, सभी की प्लानिंग विधायक गायत्री राजे पवार ही करती आई हैं।

कुछ निर्णय जनता की नाराजगी का कारण बने

देवास में विकास के कार्य तो खूब सारे हुए लेकिन उनकी प्लानिंग पर सवाल उठने लगे। इंदौर रोड स्थित फ्लाईओवर ब्रिज को शिफ्ट करने का निर्णय जनता को मनमाना और गैरवाजिब लगा। इसका विरोध जनता ने मुखर होकर सोशल मीडिया पर करना शुरू किया लेकिन राजमाता ने सभी को इग्नोर किया और अपने फैसले को सही बताया। मक्सी रोड स्थित ब्रिज की लंबाई कम करने से भी लोग मुखर हुए और निर्णय का विरोध किया। राज परिवार पर देवास में कई अवैध कारोबारीयों का समर्थन करने का भी आरोप लगा। इन सब के बाद कुछ अपने पराए होने लगे।

सांसद विद्रोही हुए और संगठन भी नाराज

देवास शहर पर एक तरफा राज के चलते कुछ अपने ही राज परिवार से नाराज होने लगे। देवास सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी का नाम इसमें पहले नंबर पर आता है। बताया जा रहा है विधायक की ओर से देवास में उन्हें किसी भी प्रकार का काम करने की मनाही थी। लेकिन सांसद के साथ कुछ लोग ऐसे जुड़े जिन्होंने उन्हें उनकी शक्तियां याद दिलाई। इसके बाद तो सांसद और विधायक के आपसी विरोध के चर्चे शुरू हो गए। बताया जा रहा है सांसद ने केंद्रीय नेतृत्व को भी विधायक द्वारा मनमाने तरीके से काम करने की शिकायत की। कई मौकों पर दोनों का विरोधाभास सामने भी आया।

देवास बीजेपी संगठन के लोग भी अंदरुनी रूप से नाराज रहे और पैलेस के दबदबे को नकारने लगे। नगर निगम चुनाव के समय यह विरोध हर वार्ड में नजर आया, जहां एक ओर भाजपा संगठन का पार्षद प्रत्याशी खड़ा हुआ वहीं दूसरी ओर पैलेस से अन्य समर्थित निर्दलीय को समर्थन किया गया। महापौर चुनाव में भी पैलेस की चली और अपने समर्थक दुर्गेश अग्रवाल की पत्नी गीता अग्रवाल को महापौर निर्वाचित करवा दिया। मुख्यमंत्री से नजदीकी के चलते लगातार संगठन पर भारी पड़ना संगठन के ही पदाधिकारी को खल गया। यह लोग दबी जुबान से आलोचना भी करने लगे।

शहर के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में कम विकास के आरोप

देवास विधानसभा में करीब 72 गांव भी लगते हैं जिसे उत्तर क्षेत्र कहा जाता है। माना जा रहा है कि शहर में ज्यादा ध्यान देने की वजह से उत्तर क्षेत्र कहीं ना कहीं विकास में पिछड़ गया। कई ग्रामीण इलाकों में रोड सड़क बन नहीं पाई और जो बनी थी वह खराब हो गई। नर्मदा सिंचाई की परियोजना भी कांग्रेस के विरोध के बाद ही क्षेत्र के लिए मंजूर हो पाई। यह माना गया की उत्तर क्षेत्र विधायक के विकास से मेल नहीं खा सका। 2018 में भी उत्तर क्षेत्र से बीजेपी को मनमाफिक वोट नहीं मिले थे।

बहरहाल 30 वर्षों से पैलेस का दबदबा देवास विधानसभा पर चला आ रहा है लेकिन यह चुनाव कुछ चुनौती पूर्ण जरूर लगता है। ऐसे में अगर कांग्रेस ने मजबूत कैंडिडेट को प्रत्याशी बनाया तो मुश्किल बढ़ सकती हैं। अपनों के भीतरघात की भी संभावना प्रबल है, क्योंकि अब देवास विधानसभा पर बीजेपी के अन्य नेता भी अपना प्रभुत्व चाहते हैं। एक ही परिवार को लगातार बागडोर देने से उभरती हुई प्रतिभाओं को मौका नहीं मिल रहा। अब देखने वाली बात होगी कि यह विधानसभा चुनाव देवास के लिए क्या नया करता है।

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