खेती किसानीदेवास
कृषि विज्ञान केन्द्र देवास के वैज्ञानिकों द्वारा जिले के विभिन्न विकासखण्डों में लगातार भ्रमण
सोयाबीन की फसल में कीटव्याधि, अफलन एवं बीमारी की रोकथाम हेतु कृषकों को सलाह
देवास. जिले में वर्तमान में सोयाबीन की फसल में तने की मक्खी, सेमीलूपर, तंबाकू की इल्ली, चने की इल्ली एवं रोगों का प्रकोप होने संबंधी जानकारी कृषकों के माध्यम से प्राप्त हो रही है, जिसको ध्यान में रखते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. ए. के. दीक्षित, शस्य वैज्ञानिक डॉ. महेन्द्र सिंह एवं कीट वैज्ञानिक डॉ. मनीष कुमार द्वारा लगातार देवास जिले के विकासखण्ड बागली के गांव राजौदा, बांगरदा, डबलचौकी, महूडि़या, करनावद, गुराडि़या, चापड़ा, मोफा पिपलिया, बेड़ामउ, पोलाय, बड़ी, कमलापुर इत्यादि एवं विकासखण्ड सोनकच्छ के डकाच्या, पोलायजागीर, नराना, चौबारा जागीर, जांमली, फावड़ा, जामगोद, खटम्बा एवं भौंरासा आदि गांवों में कृषकों के खेतों में सोयाबीन फसल का निरीक्षण किया गया।
भ्रमण के दौरान कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों के साथ श्री नारायण सिंह यादव, श्री गोवर्धन पाटीदार,श्री कमल पाटीदार, भू-स्वरूपा एफपीओ, कार्येषु एफपीओ एवं हलवाहा एफपीओ के विभिन्न सदस्य एवं ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी, क्षेत्र के जनप्रतिनिधिगण एवं कृषक शामिल थे। निरीक्षण के दौरान कुछ खेतों में तने मक्खी, सफेद मक्खी, सेमीलूपर, चने की इल्ली एवं हरी अर्द्धकुण्डल इल्ली जैसे कीटों का प्रकोप देखा गया तथा कुछ खेतों में एंथ्राकनोज बीमारी भी देखी गई। ग्राम करनावद, छतरपुरा में केन्द्र के वैज्ञानिकों द्वारा खरीफ संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें कृषकों ने भाग लिया। केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. ए.के. दीक्षित ने सोयाबीन में अफलन की समस्या के समाधान के लिए विभिन्न प्रकार के रासायनिक उर्वरकों के बारे में चर्चा की। साथ ही किसानों से आग्रह किया कि सोयाबीन की बीज दर 70 से 75 किग्रा प्रति हेक्टेयर से ज्यादा न करें जिससे पैदावार में बढ़ोत्तरी एवं कीटव्याधि का प्रकोप कम होगा। केन्द्र के कीट वैज्ञानिक डॉ. मनीष कुमार ने सोयाबीन एवं मक्का की फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों के बारे में जानकारी दी। साथ ही सही समय पर सही कीटनाशी दवाओं का उपयोग के बारे में विस्तार से चर्चा की। डॉ. कुमार ने कृषकों को जैविक कीट नियंत्रण के बारे में विस्तार से बताया। डॉ. महेन्द्र सिंह, शस्य वैज्ञानिक ने फसल विवधिकरण के अंतर्गत सोयाबीन के साथ-साथ मक्का एवं उड़द की फसल लगाने पर जोर दिया और कहा यदि एक फसल प्रभावित होती है तो दूसरी फसल से हमें आर्थिक लाभ मिल सकता है। डॉ. सिंह ने सोयाबीन, चना, गेहूं और आलू की फसल में संतुलित खाद के बारे में विस्तार से बताया। उपरोक्त समस्या को देखते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों द्वारा कृषकों को प्रशिक्षित किया गया।
प्रशिक्षण के दौरान सलाह दी कि – तना मक्खी व सफेद/हरे मच्छर के नियंत्रण हेतु लेम्डा सायहेलोथ्रिन $ थायमिथोक्सोजाम 125 ग्राम. या बीटासायफ्लूथ्रिन $ इमिडाक्लोरपिड 350 एम.एल. का उपयोग करें। केवल सफेद मक्खी हैं तो ऐसी स्थिति में केवल थायमिथोक्सोजाम 25 डब्ल्यू.जी. 100 ग्राम प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी के साथ उपयोग करें। हरी अर्द्धकुंडल इल्ली, तंबाकू की इल्ली एवं चने की इल्ली की रोकथाम के लिए प्रोपेनोफॉस 50 ई.सी. 1.25 ली. या इमाबेक्टिन बेंजोएट 5 एस.जी. 300 ग्राम या इंडोक्साकार्ब 15.8 ई.सी. 350 एम.एल. या फ्लूबेंडियामाइड 150 एम.एल. या क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5 एस.सी. 150 एम.एल. प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। फफूंद जनित एन्थ्रेकनोज नामक बीमारी के नियंत्रण हेतु टेबूकोनाझोल 625 मिली. या टेबूकोनाझोल+सल्फर 1 किग्रा. या पायरोक्लोस्ट्रोबीन 20 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. 500 ग्राम या हेक्साकोनोझोल 5 प्रतिशत ईसी. 800 मिली. प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। अफलन की समस्या के सुधार के लिए घुलनषील बोरोन 500 ग्राम $ चिलेटेड लोहा 500 ग्राम+चिलेटेड कैल्शियम 500 ग्राम या मैंकोजेब+कार्बंडाजिब 1.25 किग्रा. 500 लीटर पानी के साथ प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। 10 दिन बाद दुबारा दोहरायें तो काफी हद तक नुकसान को कम करने में आसानी होगी।