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वीडियो: देश के किसानों की कमर तोडऩे वाले कृषि बिल का युवा किसान संगठन ने किया विरोध

  • कृषि कानून से उत्पन्न होने वाली समस्या व नुकसान को लेकर युवा किसान संगठन ने की प्रेसवार्ता
  • किसानों के नाम पर बनाए गए बिलों में एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) क्यों नही?

देवास। कृषि बिल 5 जून 2020 (किसानों के लिए काले कानून) के खिलाफ युवा किसान संगठन द्वारा प्रेसवार्ता का आयोजन किया गया। संगठन अध्यक्ष रविन्द्र चौधरी ने बताया कि रविवार को प्रात: 11.30 बजे मल्हार स्मृति मंदिर स्थित वरिष्ठ नागरिक संस्था सभागृह में सम्पन्न हुई प्रेसवार्ता में संगठन के पदाधिकारियों व किसानों ने केन्द्र सरकार द्वारा लागू किए गए किसान बिलों से देश के किसानों को होने वाली समस्या एवं नुकसान पर अपनी बात रखी। कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती जी के चित्र पर माल्यार्पण कर किया गया। संगठन के इंदौर जिला प्रभारी विकास चौधरी ने कहा कि वह स्वयं लॉ की पढ़ाई कर रहे हैं व उन्होंने विस्तृत में इन तीनों कानूनों का अध्ययन किया है और यह तीनों कानून एक तरफा (वन साईडेड) है व एक वर्ग विशेष को (चुनिंदा लोगों) को फायदा पहुंचाने की दृष्टि से बनाए गए प्रतीत होते हैं। उक्त तीनों कानूनो में अगर आवश्यक सुधार समय रहते ना किए गए तो आगे आने वाले 2 से 3 वर्षों में किसानों का वर्तमान व उनका भविष्य पूर्ण रूप से खतरे में आने वाला है। जिसके चलते युवाओं से अपील की है कि वह अपने जनप्रतिनिधियों से बात करें व इन कानूनों में किसान हित में एमएसपी न्यूनतम समर्थन मूल्य का आवश्यक शर्त जुड़वाएं वह देश के जन-जन व किसानों का हित सुनिश्चित करें। संगठन अध्यक्ष रविंद्र चौधरी ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि पहला किसान विरोधी कानून जो कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य विधेयक 2020 है। इस कानून का उद्देश्य पूर्ण रूप से एपीएमसी एक्ट 1950 के मूल स्वरूप को कमजोर करना है व मंडियों को समाप्त करना है। क्योंकि अब तक मंडी समिति किसान की फसल को बिकवाने हेतु व बेची गई फसल का भुगतान करवाने के लिए जवाबदेह होती थी। क्योंकि इस विधेयक से अब व्यापारी पूरे देश भर में से बगैर किसी लाइसेंस के माल खरीद पाएगा। इस हेतु मंडी समितियों व अन्य किसी भी संस्था की किसानों की फसल का भुगतान करवाने हेतु कोई जवाबदेही नहीं होगी।

दूसरा कानून आवश्यक वस्तु संसोधन अधिनियम 2020 है। इस अधिनियम में संशोधन करके सरकार ने एक तरीके से खाने-पीने की आवश्यक सामग्री जैसे गेहूं, दाल, चावल, तेल, आलू, टमाटर, प्याज जैसी सामग्री को कालाबाजारी करने की खुली छूट दे दी है। जिसके चलते देश के चुनिंदा व्यापारी इसे खरीदकर अपने पास अनिश्चित मात्रा अनिश्चित समय के लिए स्टॉक कर पाएंगे। अपने मनमाने दाम पर बेच पाएंगे। जिस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होगा।

तीसरा कानून मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान समझौता अध्यादेश है। इस कानून में व्यापारियों को छूट दी गई है कि वह कौन से क्षेत्र में कौन सी फसल की खेती करवाएंगे, कितनी मात्रा में करवाएंगे, किस भाव में खरीदी करेंगे व कब खरीदी करेंगे। उपरोक्त दी हुइ सारी बातों का वर्णन एक अनुबंध में होगा। किसान इस अनुबंध को करने के लिए आने वाले समय में मजबूर हो जाएगा क्योंकि उसकी फसल को एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर खरीदने की सुनिश्चितता का कानून ना होने की वजह से बड़े उद्योगपतियों के साथ अपनी फसल का करार करने के लिए मजबूर होगा।

युवा किसान संगठन केन्द्र सरकार एवं जनप्रतिनिधियों से सवाल पूछता है कि इस कानून में विवाद का निपटारा करने के लिए किसानों को कोर्ट जाने की स्वतंत्रता क्यों नहीं दी गई? तीनों कानूनों में कहीं पर भी किसान की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिले ऐसे नियम क्यों नहीं है? क्या ये कानून कृषि उपजों की कालाबाजारी करने की खुली छूट नहीं दे रहे है? क्या ये कानून ईस्ट इंडिया कंपनी की तर्ज पर चुनिंदा उद्योगपतियों को कृषि क्षेत्र में व्यापार के नाम पर कब्जा करने की स्वतंत्रता नहीं दे रहे है? किसान को उनकी मेहनत से जमा की हुई फसल बीमा की राशि फसलों का नुकसान होने पर समय पर मिले इसका उल्लेख क्यों नहीं है? युवा किसान संगठन ने खुले मंच से सरकार के जनप्रतिनिधियों को तीनों कानूनों पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया है व उन्होंने कहा है कि वह जनता के बीच में आए व स्पष्ट करें कि किस आधार पर ये कानून किसानों के लिए हितकारी है। इस अवसर पर संगठन सचिव राधेश्याम वैष्णव, कोषाध्यक्ष सुनील चौधरी, उपाध्यक्ष राजेश पटेल, बाबूलाल चौधरी, सिलोल्या सरपंच राकेश मण्डलोई, शिव हापाखेड़ा, ईश्वरलाल चौधरी, श्यामलाल चौधरी, विक्रम चौधरी, अन्य किसान उपस्थित थे। संचालन अतुल पांचाल ने किया

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