
देवास/सीहोर, 29 जून 2025: मध्य प्रदेश के खिवनी अभयारण्य में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। वन विभाग द्वारा 23 जून को 51 आदिवासी कच्चे मकानों को ढहाने के बाद आदिवासी समुदाय में आक्रोश फैल गया। हजारों आदिवासियों ने खातेगांव में जोरदार प्रदर्शन किया, जिसके बाद केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हस्तक्षेप किया। सीहोर के डीएफओ मगन सिंह डाबर को हटाया गया, और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जनजातीय मंत्री विजय शाह को स्थिति संभालने के लिए खिवनी भेजा। लेकिन इस दौरान मंत्री शाह को कीचड़ भरे रास्तों से पैदल गांव पहुंचना पड़ा और वापसी में ट्रैक्टर-ट्रॉली का सहारा लेना पड़ा।
क्या है खिवनी अभयारण्य विवाद?
सीहोर और देवास जिलों में फैला खिवनी अभयारण्य वर्षों से आदिवासी समुदायों की आजीविका और संस्कृति का आधार रहा है। वन विभाग ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर बिना नोटिस या सुनवाई के 51 कच्चे मकानों को जेसीबी से ढहा दिया। आदिवासियों का आरोप है कि यह कार्रवाई वन अधिकार अधिनियम 2006 का उल्लंघन है, जो उन्हें जंगल में रहने और आजीविका के अधिकार देता है। सोशल मीडिया पर आदिवासियों ने इसे मानवाधिकारों पर हमला बताया, और कई ने पूछा, “क्या आदिवासी होना अब गुनाह है?”
आदिवासियों का प्रदर्शन और सियासी हलचल
23 जून की कार्रवाई के बाद, शुक्रवार को खातेगांव में हजारों आदिवासियों ने विरोध प्रदर्शन किया। कई जिलों से आदिवासी समुदाय के लोग एकजुट हुए और वन विभाग के खिलाफ नारेबाजी की। इस मुद्दे पर कांग्रेस ने भी सरकार को घेरा, इसे आदिवासी विरोधी नीति करार दिया। प्रदर्शनकारियों ने वन अधिकार कानून के तहत पुनर्वास और मुआवजे की मांग की।
आदिवासियों की शिकायत केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान तक पहुंची, जिन्होंने रविवार को प्रभावित परिवारों के साथ भोपाल में सीएम मोहन यादव से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद सीहोर के डीएफओ को तत्काल हटा दिया गया। सीएम ने संवेदनशीलता के साथ कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने के निर्देश दिए।
मंत्री विजय शाह का कीचड़ में सफर
सीएम के निर्देश पर जनजातीय मामलों के मंत्री विजय शाह रविवार को खिवनी गांव पहुंचे। बारिश के कारण रास्ते कीचड़ से भरे थे, जिसके चलते उन्हें पैदल चलना पड़ा। गांव पहुंचकर उन्होंने प्रभावित परिवारों से बातचीत की और उनकी शिकायतें सुनीं। आदिवासियों ने उन्हें ज्ञापन सौंपा, जिसमें अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई को अनुचित बताया गया। वापसी में मंत्री को ट्रैक्टर-ट्रॉली में बैठकर लौटना पड़ा, जो सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया।
सरकार की सफाई और विपक्ष का हमला
सीएम मोहन यादव ने कहा कि उनकी सरकार गरीबों के साथ है और खिवनी मामले की जांच के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि प्रशासन को ऐसी व्यवस्था बनाने को कहा गया है, जिसमें संवेदनशीलता बरती जाए। दूसरी ओर, कांग्रेस ने इस मामले को आदिवासियों के खिलाफ अन्याय का प्रतीक बताया। पार्टी ने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार जंगल और जमीन से आदिवासियों को बेदखल कर रही है।
सोशल मीडिया पर उबाल
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर #SaveMPTribals हैशटैग के साथ आदिवासियों ने अपनी आवाज बुलंद की। कई यूजर्स ने लिखा कि पीढ़ियों से जंगल में रह रहे आदिवासियों को बिना पुनर्वास के उजाड़ना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। एक यूजर ने लिखा, “बारिश में टूटी छत, भीगे सपने… छोटे बच्चे अब मलबे से किताबें खोज रहे हैं।”
आगे क्या?
खिवनी अभयारण्य विवाद अब सियासी रंग ले चुका है। आदिवासी संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो आंदोलन और तेज होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला मध्य प्रदेश में आदिवासी वोट बैंक को प्रभावित कर सकता है, जो बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
इस बीच, सरकार ने जांच के आदेश दिए हैं, और यह देखना बाकी है कि क्या प्रभावित आदिवासियों को पुनर्वास और मुआवजा मिलेगा। खिवनी का यह विवाद न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि पूरे देश में आदिवासी अधिकारों पर बहस को तेज कर रहा है।
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